The 'Eravateswara Temple' is located at Darasuram near Kumbakonam in the state of Tamil Nadu. This temple is declared a global heritage by UNESCO
Airavateshwara Temple is dedicated to Lord Shiva. Lord Shiva is known here as Airavateshwara.
It is believed that the temple was built for entertainment. The pillars of the temple are 80 feet high. The southern part of the front mandapam is in the form of a huge chariot with large... wheels of stone which the horses are pulling. To the east of the courtyard is a group of carved buildings.
On the southern side of the outpost is a group of 3 steps with magnificent carvings. These are the steps on which the slightest sound of music comes out from the feet. There is a mandapam with 4 tirthas in the southwestern corner of the courtyard of the temple. One of which has the image of Yama.
It is believed that the Airavat elephant was white but was saddened by the elephant's color-changing due to the curse of sage Durvasa, he reclaimed his white color by bathing in the holy waters of this temple. There are many inscriptions in the temple.
आइये परिचय कराते हैं एक अत्यंत प्राचीन मन्दिर से जिसका नाम है ‘एरावतेश्वर मंदिर’।
यह मंदिर यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर घोषित है तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित यह हिंदू मंदिर है जिसे दक्षिणी भारत के 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था।
भगवान शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी।
मंदिर की बनावट
मंदिर की एक एक चीज़ इतनी खूबसूरत भब्य और अत्यंत मनोहर है कि इसे देखने के लिए वक्त के साथ ही समझ भी चाहिए। पत्थरों पर की गई नक्काशी वाह अब क्या कहें मंदिर के स्तंभ 80 फीट ऊंचे हैं। सामने के मंडप का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले विशाल रथ के रूप में है जिसे घोड़े खींच रहे हैं। आंगन के पूर्व में नक्काशीदार इमारतों का समूह है। जिनमें से एक बलिपीट है मतलब बलि देने का स्थान। चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशियों वाली 3 सीढियों का समूह है। यही वो सीढ़ियां हैं जिनपर पैर से हल्का सी भी ठोकर लगने से संगीत की ध्वनियां निकलती हैं। मंदिर के आंगन के दक्षिण पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडप है।
मंदिर का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि ऐरावत हाथी सफेद था लेकिन ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत दुःखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान किया और अपना सफेद रंग पुनः प्राप्त किया। मंदिर में कई शिलालेख हैं। इन लेखों में एक में कुलोतुंगा चोल तृतीय द्वारा मंदिरों का नवीकरण कराए जाने के बारे में जानकारी मिलती है। गोपुरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लाई गई, जिसे बाद में राजाधिराज चोल प्रथम द्वारा कल्याणपुरा नाम दिया गया, एरावतेश्वर मंदिर को वर्ष 2004 में महान चोल जीवंत मंदिरों की यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया।
महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, गांगेयकोंडा चोलापुरम का गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं।
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